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हमीररासो : 15
दोहा पातिसाहि तब दूत सौं, फिरि पूछी मन लाय ।। राजनीति साबूत के, कहिये बात बनाय ॥६॥ दूत कहै पतिसाहि सौं, चित दे सुनिये साहि । राव नीति अरु रैति (की), कहत जू देखी ताहि ॥६६।।
मद मसीति मेटि जे हरखि, हरि मदिर कीजै । बंग निवाज नहीं होय कथा, हरि स्रवन सुनीजै ॥ रोजा बंग निवाज, कुरान कलमा न भनीजै । मुसलमान का नाम, साहि वहां कहूं न सुनीज । नहीं दीन दरगाह साहि, जहांन पैकबर' पीर । कलमा कहुं न कहि सकै, जहां लग राज हमीर ।।७०।।
आ तरनि सौं पुरखि साहि, [रहसि] करि सके न कोई। पिता पुत्र इक ठौर बैठि, सरभरि नहीं होई ॥ पुरखि पान की असतरी, तकै मारिये डारि । जहां जहां राज हमीर का, जहां पतिभरता नारि ॥७१।।
दोहा
फेरि पूछी तब दूतनै, कैसा गढ़ रणथंभ । जाके गरब हमीर अव, फिरिया मुझि अचंभ ॥७२।।
१ ख. ग. घ. पूरा पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका है। वचनिका-केर पतिसाहि दूत सौं बचन कहता है। राव हमीर की नीति साबित को समाचार कहो। राज कीसी नीति सौं करता है । ये समाचार हमीर के कहो । २ ख. ग. अस्त सबद सुनि त्यामिये, सति के बचन सधीर ।
कलिजुगि पाई सके नहीं, जहां लग राज हमीर ।।प्र. पा.।। ३ ख. काहूंन । ४ ख. घ. नहीं अकबर। ५ ख. नहीं है। ६ ग. राव । ७. ख. हांसी। ८ ग. प्रति में [ ]| ९ ख. ग. ध तो डारिय मार । १० ग. घ. पूरा पद्य नहीं है। इसके स्थान पर बचनिका है, बचनिका-रि पातिसाहि कहता है. गढ़ रणथंभ कैसा है।
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