Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 20
________________ हमीररासो . 7 असो करम' संजोग हुरम, हजरति की विसराई । होतिब मिटत न अमिट, निकट महमा के आई ।। असे २ गंधवसि कूरम भया, भई मीर मतिमंद । सेर मारि करि सेख रह्यो, साहिकी हुरम संग ।। २८ ।। दोहा चलि आया पतिसाहि तहां, देखे महिमा साहि* ॥ २६ ॥ भयौ कोप पतिसाहि, रोस नहीं अंग समानै । खड़ा सेख कर जोड़ि, साहिकौं सीस नबायै ।। साहि बचन यम ऊचरै,५ ६कर तुजे तकबीर । गरदन कुटन कबूल करि, पड़ि तुझे तकसीर ।। ३० ।। सेख दोऊ कर जोड़ि, साहि कौं सीस नवावै । खूनी हाजरि खड़ा करो, हजरति मन भावै ।। हुरम बचन यम ऊचरै, सुनौ बचन पतिसाहि । गरदन प्रथम कबूल मुझि, पीछे महिमासाहि ।। ३१ ।। कहां मैं कहां या सेख, किन्है पंगाम पठाये । जुड़िया जोग संजोग, साहि करतार लिखाये ।। कहां फंद कहां पारधी, रहत मिरग वन खंड । लेख न मिटै ललाट के, परत पाव जहां फंद ।। ३२ ।। सुनि हजरत यह बचन, फिकर करि निजर छिपाई। जाव सेख मति रहो, जितै मेरी पतिसाही ।। साहि बचन यम ऊचरै, सुनि रे महिमां सेख । इसा तुझै को रखवै, च्यारि कूट चहू देस ।। ३३ ।। १ क. असा कारन संग, ख. करम के संग। २ ख. मधकर मैक बस भयो, . ग. मधुकर मसक बस । ३ ख. महमंध । - ख. नहीं । ५ ग. वच्चरे । . ६-६ ग. करहु तुमैं तकबीर। ७ ख. हमारी, ग. जहां लग हमरी। ८ म.. अरा, ९. अंगवै। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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