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___हमीररासो : 5
दोहा
ग्यारासै दाहोत्तरा १११०, पुखि नखत्रि वैसाख' । दोय पीढी रणथंभ किय, बरस पिच्चासी ८५ राज ॥ १३ ॥
केते महिपत भये, राव राजा अरु रानां । जिन जैसे जो जस करै, जिसे कोऊ जाय वखानां ।। गये अनेक चलि मंडली, गये अनेक पतिसाहि । करै हमीर हठ साहिसौं, कवि कहै सकति बनाय' ।। १४ ।।
दोहा
चहुं ओर चढुवान तें, अरि कोऊ गहै न किवांन । अब कछु राव हमीर के, बरनौं गुनहिं बखांन ।। १५ ।।
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मंगलाचरण सुमरौं देवी सरस्वती, गौरी' सुत बुधि वीर । प्रलादीन कळिजुग भया, सतजुग राव हमीर ।। १६ ।। पहिलै साहिब सुमरिये, सब का सिरजण-हार ।
" ।।१७।। आदि भवानी अंबिका, वर दे सुरसति माय । अलादीम हमीर के, कहू कछु गुन गाय" ।।१८।। कछु भवानी वर दियौ, कछु अपनी बुध उनमान । कछु बचन सुनि चंद के, कवि गुन कह्यौ बखानि ।। १६ ।। जुग कीरति जसवार करि, गये सूर अरु मीर । ना थिर रहे अलावदी, ना थिर रहे हमीर ।। २० ॥
१ ख. वैसाक । २ ख. सत जस कियो । ५-६ ख. श्री प्र.पा.। ७. वखान ।
३ ख. नहीं । ४ ख. यह नाय।
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