Book Title: Hamir Raso
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 17
________________ 4: हमीररासो दोहा जिती धर सिर सेसके, खग बळ लियै पजाय । तूठी माणक रायन, सकत समधरा मांय ।। ६ ॥ सुर नर मुनि संकर सहत, सभी आसिका देत । करौ राज नहचळ सदा, तुम सांभरी नरेस ।।७।। प्रादू थान अजमेरिगढ़, सांभर नगर निकास । तंवर मेट दिली तखत,' कर्यो राज प्रथीराज ॥८॥ छंद पूरब पछिम दखिन, उत्तर धर केवर पाये । छत्री-वस छत्तीस, आय सब सरन रहाये ।। धन सुवस चहुवांन के, प्रासापुरा सहाय' । छत्रपती पतिसाहि जिन, पकरि* लगाये पाय ।। ६ ।। राव सूर दो वेर साहि, गौरी गहि लाये । ऊदल पाल्ह प्रभाल, महोबै खेत खिसाये ।। राव जैत कर तेग गहि अरि, कोऊ धरत न धीर । प्रलादीन सौं जंग कर, रणथंभ राव हमीर ।। १० ।। करि प्राखेटक राव, सूर संग सूर' लगाये । जिनके चिहनन चले, पदमके आसन पाये ।। येक पाव खट मास ठाढे, तप कीये प्रसन भये जु महेस । जब संकर कर धरै, करो राज यहां अंत ।। ११ ॥ मिले भील सब आय, पाय लगि बचन उचारे । हम सेवग तुम स्याम, रहैं प्राधीन तुम्हारे ।। वनवासी सबही मिलै, नर त्रियन के मुड । वार सनिसर तीज तिथि, रच्यौ जैत रणथंभ ।। १२ ।। १ ग. प्रति यहां से प्रारम्भ होती है। २ ख. यह पद्यांश नहीं है। ३ ख. कसाये • स्वीकृत प्रति, क. यहां से प्रारम्भ होती है। ४ ख. अ. पा. धन सुवंस बहुवारण को, प्रासापुरा सहाय । ५ ख. नहीं। ६ ख. माये । www.jainelibrary.org Jain Educationa International For Personal and Private Use Only

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