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॥ श्री ।। कवि महेश रचित * हमीररासो -
*अमरपुरी ब्रह्मलोक बचन, सत्त कठन कराई । रिखि सौं छत्री भयो, सोम के वंस कहाई ।। जिन जिन औतरां, संकट पड़े न पाय । अनल कुड उतपत भये, च्यार भुज धर च्यार ।।१।।
च्यार भुजा आवध सहत, तेज पुज परचंड । सुर हरखे कोपे असुर, येते भये नौ खंड ।। परसराम प्रासापुरी, ये दोऊ वर देय । गुरु चंपा पाग्या दई, हणौ अरि कुळ चाह ।।२।।
मार असुर कुळ मेट, सुरन के मान वधाये । राछस कटक दुसट, पोहमी पर रहण न पाये ॥ मंडळीक च्यार येक, चकवै येते भये चौहाण । सूर अस्त उदोत लौं, फिरी चहुं दिसि पारण ॥ ३ ॥
रथ मारुत को. चले, तिहूँ लोक चक्र चलाये । कर राव नेम लियो, जिग नित नेम कराये ।। येते नरपत नौ-खरब, लागै पाय कर जोड़ । राज-जोग दोऊ करे, अजैपाळ अजमेरि ।। ४ ।। वीसळदे वीस कोड़, जोड जळ मांहि धराई । मानै तीस कोडि, विलसी खरची अरु खाई ।। कोको भयो कमड़ लिछ, अपनी अपनी ठौर । पाना वोसळ दो भये, मंडळीक सिर-मौड़ ॥५॥
•- ख. प्रति संख्या सभी प्रतियों में पूर्ण है ।
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