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[ 4 ] में द्रोणाचार्य की मूर्ति के सामने पभ्यास करके एकलव्य भील ने अर्जुन के बराबर धनुर्विद्या हासिल की थी। प्रिय ! इस बात को स्वमत - परमत वाले सभी जानते हैं। इससे ज्यादा क्या प्रमाण चाहिए।
(3) वीर प्रभु का अतीत अनागत सो द्रव्य निक्षेपा । वह भी वंदनीक है । अब पहिले यह समझना होगा कि द्रव्यनिक्षेपा कहते किसे हैं ? वर्तमान वस्तु का अतीत अनागत काल में जो रूपान्तर है, उसी को द्रव्य निक्षेपा कहते हैं। जैसे श्री वीर प्रभु के प्रतीत काल में तीर्थंकर पणे का निश्चय हो गया तब से छद्मस्थ 12 वें गुणठाणे तक द्रव्य तीर्थंकर । वह अनागत । तथा निर्वाण के पीछे भी द्रव्य तोथंकर । वह प्रतीत । यह सब जैनिओं को वंदनीक है।
(4) भाव निक्षेपा वीर प्रभु । के-34 अतिशय, पैंतीस वाणो, पाठ प्रातिहार ये सब वन्दनीक हैं। ... (1) नाम निक्षेपा-सूत्र उववाइ में वन्दनीक कहा है । देखो! "महाफलं खल अरिहंताणं भगवंताणं नाम गोयस्स वि" सवणयाए यों नामनिक्षेपा वन्दनीक है।
(2) स्थापना निक्षेपा - वन्दनीक है। आचारांग, ठाणांग, समवायांग, भगवती. ज्ञातासूत्र, उपासकदशा, उववाई, रायपसेणीय, जीवाभिगम, उत्तराध्ययन आदि बहुत सूत्रों में लेख है । इसी किताब में आगे अच्छी तरह से खुलासा करेंगे । प्रिय ! यह किताब ही स्थापना निक्षेपा (मूर्ति) को वन्दनीक-पूजनोक साबित करने हेतु लिखी गई है । सो अग्रे देख लेना।