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विषय-सूची
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२२० २२०
२२१ २२२ २२३ २२३ २२३ २२४
लक्ष्मीके मदका निषेध
१७७ स्वाध्यायतपकी उत्कृष्टता शिल्पकला आदिके ज्ञानका मद करने का निषेध १७८ श्रुतज्ञानकी आराधना परम्परासे मुक्तिका बलके मदका निषेध
१७९ कारण तपका मद दुर्जय है
१७९ पूजाके मदके दोष
१८०
चतुर्थ अध्याय सात प्रकारके मिथ्यादष्टि त्यागने योग्य १८. चारित्राराधनाकी प्रेरणा जैन मिथ्यादृष्टि भी त्याज्य
१८१ चारित्रकी अपूर्णतामें मुक्ति नहीं मिथ्याज्ञानियोंसे सम्पर्क निषेध
१८२ दया चारित्रका मूल मिथ्याचारित्र नामक अनायतनका निषेध १८३ सदय और निर्दयमें अन्तर हिंसा-अहिंसाका माहात्म्य
१८४ दयालु और निर्दयका मुक्तिके लिए कष्ट तीन मूढ़ताका त्याग सम्यग्दृष्टिका भूषण १८४ उठाना व्यर्थ उपगूहन आदि न करनेवाले सम्यक्त्वके वैरी
विश्वासका मूल दया उपगृहन गुणका पालन करो
१८७ एक बार भी अपकार किया हुआ बार-बार स्थितिकरण
१८८ अपकार करता है वात्सल्य
१८८ दयाको रक्षाके लिए विषयोंको त्यागो प्रभावना
१८९ इन्द्रियाँ मनुष्य की प्रज्ञा नष्ट कर देती हैं विनय गुण
१९० विषयलम्पटकी दुर्गति प्रकारान्तरसे सम्यक्त्वकी विनय
१९३
विषयोंसे निस्पृहको इष्टसिद्धि अष्टांगपुष्ट सम्यक्त्वका फल
व्रतका लक्षण क्षायिक तथा अन्य सम्यक्त्वोंमें साध्य-साधन
व्रतकी महिमा भाव
१९४ व्रतके भेद तथा स्वामी
हिंसाका लक्षण तृतीय अध्याय
दस प्राण श्रुतकी आराधना करो
त्रसके भेद श्रुतकी आराधना परम्परासे केवलज्ञानमें हेतु १९८ । द्रव्येन्द्रियोंके आकार मति आदि ज्ञानोंकी उपयोगिता
त्रसोंका निवासस्थान पाँचों ज्ञानोंका स्वरूप
२०२ एकेन्द्रिय जीव श्रुतज्ञानको सामग्री व स्वरूप
२०३ वनस्पतिके प्रकार श्रुतज्ञानके बीस भेद
साधारण और प्रत्येककी पहचान प्रथमानुयोग
२०८ निगोतका लक्षण करणानुयोग
२०९ निगोतके भेद चरणानुयोग
२१. पृथ्वीकाय आदिके आकार द्रव्यानुयोग
२१० सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित आठ प्रकारकी ज्ञानविनय
२११ पर्याप्तक और अपर्याप्तकों के प्राण ज्ञानके बिना तप सफल नहीं
पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्तका ज्ञानकी दुर्लभता
२१४ स्वरूप मनका निग्रह करके स्वाध्याय करनेसे दुर्धर
पर्याप्तिका स्वरूप और भेद संयम भी सुखकर
२१५ चौदह जीवसमास
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