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(२)
1. जयरामकृत धर्मपरीक्षा
प्रस्तुत विषय का कदाचित यह प्राचीनतम ग्रन्थ है जिसका उल्लेख हरिषेण ने अपने अपभ्रंश ग्रन्थ धम्मपरिक्खा में किया है। यह ग्रन्थ प्राकृत गाथाप्रबन्ध में लिखा गया होगा। हरिषेण की धर्म -परीक्षा सं. 1044 (A. D. 983) में लिखी गई थी। जयरामकृत धर्मपरीआ इसके कितने पहले लिखी गई होगी, कह सकना कठिन है। वह अभी तक अप्राप्य है।' उनके जीवनकाल आदि के विषय में भी कोई जानकारी नहीं मिलती। 2. अमितगति कृत धर्मपरीक्षा
यह उपलब्ध धर्मपरीक्षा ग्रन्थों में प्राचीनतम है। इसकी भाषा संस्कृत है और 1945 श्लोकों में निबद्ध तथा इक्कीस परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें ऊटपटांग पौराणिक कथाओं को सयुक्तिक व समानान्तर कृत्रिम कथाओं के माध्यम से खण्डित किया गया है। इसके रचयिता अमितगति द्वितीय हैं जो काष्ठासंघ-माथुरसंघ के आचार्य थे। इनकी गुरु-परम्परा इस प्रकार हैवीरसेन-देवसेन-अमितगति प्रथम-नेमिषेण-माधवसेन-अमितगति (द्वितीय) । अमरकीर्ति के 'छक्कमोवएस' के अनुसार अमितगति की शिय परम्परा इस प्रकार है- शान्तिषण-अमरसेन-श्रीसेन-चन्द्रकीति-अमरकीति ।
अमितगति धारानरेश भोज के सभारत्न थे । धर्मपरीक्षा की रचना उन्होंने मात्र दो माह में की थी। इसका रचनाकाल है वि सं. 1070 (ई. 1014) । अमितगति ने अपनी धर्मपरीक्षा जयराम अथवा हरिषेण की धर्मपरीक्षा (ई.988) के आधार पर की होगी। इनके अन्य ग्रन्थ है- सुभाषितरत्नसंदोह, उपासकाचार, पंचसंग्रह, आराधना, भावना द्वात्रिंशतिका, चन्द्रप्रज्ञप्ति, सार्द्धद्वयद्वीप-प्रज्ञप्ति एवं व्याख्याप्रज्ञप्ति ।
1. जा जयरामें आसि विरइय गाह-पबंधि ।
साहमि धम्मपरिक्ख सा पद्धडियाबंधि ॥ 1. 1 2. जिनरत्नकोश, पृ. 189. ग्यारहवीं AII Jndia Oriental Conference, ____1941 (हैदराबाद) में पठित डॉ. आ. ने. उपाध्ये का लेख "हरिषेण's
धर्मपरीक्षा in अपभ्रंश' Annals B. O. R. 1-75, PP. 592. 3. अमितगतिरिवेदं स्वस्य मासद्वयन।
प्रथित विशदकीतिः काव्यमुद्भूतदोषम् ।। 4. जिनरत्नकोश, P. 190, हिन्दी अनुवाद, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय,
बम्बई, 1908 ; जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी, कलकत्ता, 1908; विण्टर-नित्स, हिस्ट्री आफ इन्डियन लिटरेचर, भाग 2, P. 563; एन, मिरोनेव, डि धर्मपरीक्षा डेस अमितगति, लाइजिग, 1908.
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