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तो सावधान ! हमें भी दुर्योधन और दुःशासन जैसी कुलघाती संतानों का सामना करना पड़ सकता है ।
बच्चे उस कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं जिन्हें हम जैसा चाहें वैसा ढाल सकते हैं। उनके विकास में भाग्य की भूमिका केवल 30% होती है, पर प्रयास का परिणाम 70% आया करता है। प्रयास 100% हों तो 30% वाले
भाग्य को भी अनुकूल बनाया जा सकता है।
यदि आप एक पिता हैं तो अपनी संतान को इतना योग्य बनाएँ कि वह समाज की प्रथम पंक्ति में बैठने के काबिल बने और यदि आप किसी के पुत्र हैं तो इतना अच्छा जीवन जिएँ कि लोग आपके माता-पिता से पूछने लगें कि आपने कौन-से पुण्य किये थे जो आपके घर ऐसी संतान पैदा हुई।
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