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- जीवन किसी साँप-सीढ़ी के खेल की तरह है। कभी
साँप के ज़रिए हम ऊपर से नीचे लुढ़क आते हैं तो कभी सीढ़ी के जरिए नीचे से ऊपर पहुँच जाते हैं। एक बार नहीं, दस बार भी साँप निगल ले, तब भी हम इस उम्मीद से पासा खेलते रहते हैं कि शायद अगली बार सीढ़ी चढ़ने का अवसर अवश्य मिल जाए। निराशा मृत्यु का दूसरा नाम है। हम कभी निराश न हों, पर अगर हो भी जाएँ, तब भी उस निराशा में भी काम अवश्य करते रहें। लगातार टपकते पानी से तो पत्थर भी घिस जाया करता है। - सबके लिए एक ही प्रेरणा है: मुन्ना भाई! लगे रहो लगन
से। बस, लगातार जुटे रहें। आने वाला कल तुम्हारा होगा।
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