Book Title: Charge kare Zindage
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 76
________________ क्रोध का अंतरमंथन कर डालेगा और तब आप जो भी कहेंगे, वह मक्खन की तरह सार रूप होगा । 75 धीरज से सोचने पर कई दफ़ा लगता है कि मैं व्यर्थ ही क्रोधित हुआ । अपने इस प्रायश्चित से प्रेरणा लीजिए और निर्णय कीजिए कि मैं भविष्य में आगे-पीछे का सोचकर ही क्रोध करूँगा । ज़रा सोचें कि कब तक यूँ ही उफनते और फुफकारते रहेंगे। अगर मरकर साँप या साँड बनने की चाह हो तो पूरी आज़ादी से क्रोध कीजिए । जीवन में कभी भी क्रोध को न्यौता मत दीजिए, अन्यथा वह लोभी जंवाई की तरह आएगा और आपको कर्ज में डुबो जाएगा । ■ कृपया बड़े साइज़ का एक काग़ज़ लीजिए और उस पर लिख दीजिए- 'हे जीव शांत रह । कब तक यूँ ही हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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