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• आप कहीं भी, कभी भी प्रभु से संवाद कर सकते हैं, पर इतना ज़रूर ख़याल रखना चाहिए कि प्रभु से की गई प्रार्थना महज़ शब्दों का खेल न हो ।
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बुराई नहीं है, पर प्रभु का सच्चा निवास तो हम सबके हृदय में है । आप अपने भीतर बसे प्रभु के आगे अपना आत्मसमर्पण कीजिए ।
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प्रभु से अपने लिए कुछ माँगना स्वार्थ नहीं है। प्रभु से कुछ कहना या माँगना स्वार्थ कैसे हो सकता है ? अपन लोग तो प्रभुकी पुत्र-पुत्रियाँ हैं ।
प्रभु सर्वत्र हैं। वे अपनी हर संतान के साथ हैं । आप जब चाहें, प्रभु से नाता जोड़ सकते हैं । बस, फोन उठाएँ और नंबर मिला लें।
प्रभु चाहते हैं कि आप अपना हँसता- खिलखिलाता भरपूर जीवन जिएँ । वे हमारे भाग्य में कोई रोड़ा नहीं अटकाते, बल्कि हमारे भाग्य को अनुकूल बनाने में हमारी मदद करते हैं ।
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