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दिन में चौबीस घंटे होते हैं। हर वक़्त हम व्यापार, घरगृहस्थी और मेल-मिलाप में ही व्यस्त रहते हैं। जो हमें हर दिन 24 घंटे देता है, क्या हम उस प्रभु के लिए 24 मिनट भी निकाल पाते हैं? प्रभु को माइक पर नहीं, मन में पुकारिए। माइक पर उठी पुकार भीड़भाड़ के शोर में खो जाती है, पर मन में उठी पुकार सीधे प्रभु से लौ लगाती है। प्रभु को दिल में भी बसाइए, घर में भी रखिए और दुकान में भी उसकी छवि विराजमान कीजिए ताकि दिल से पाप न हो, भोजन भी प्रभु का प्रसाद बने और ग्राहक भी प्रभु से रिश्ता जोड़ने का आधार बने। मेहमान को अच्छी चीजें दी जाती हैं। बेटी-जंवाई को बेशकीमती वस्त्र दिए जाते हैं। नेता और न्यायाधीश को बहुमूल्य उपहार दिए जाते हैं, फिर प्रभु के आगे चवन्नीअठन्नी चढ़ाना हमारी किस मानसिकता का सूचक है।
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