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■ बच्चे तो प्यार, हँसी, समय, कहानी और खेल के भूखे होते हैं और बुज़ुर्गों के पास इन चीज़ों का भंडार है । वे बच्चे किस्मत वाले हैं जिन्हें दादा-दादी और नाना-नानी से यह ख़ज़ाना मिलता है ।
■ बच्चों का घर बच्चों के लिए सबसे प्रिय मंदिर होता है । घर का स्वरूप ऐसा बनाएँ जिससे उन्हें प्रकृति, परमात्मा और अच्छे संस्कारों की सहज प्रेरणा मिल सके।
■ घर की दीवारों पर हमेशा प्रेरक और प्रभावी चित्र टाँगिए, क्योकि बच्चे नकलची बंदरों की तरह होते हैं। अगर वे घर में विवेकानंद का चित्र देखेंगे तो वैसा बनने की कोशिश करेंगे, वहीं यदि चार्ली चैपलिन का चित्र देखेंगे, तो वैसी नकल करना शुरू कर देंगे ।
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बच्चों को खेलने का भी अवसर दीजिए। जो ख़तरों से नहीं खेलेगा, वह जीवन में आगे कैसे बढ़ेगा ?
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