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अपने बच्चों में आत्मविश्वास जगाएँ। उन्हें प्रेरणा व प्रोत्साहन दें। प्रेरणा और प्रशंसा पाकर तो चींटी भी पहाड़ लाँघ जाया करती है और अन्धी-गूंगी-बहरी बच्ची भी महान चिन्तक हेलन केलर बन जाया करती है। अपने बच्चों को दादा-दादी के छाँव तले पलने दीजिए। आप तो, बच्चे स्कूल जाते हैं तब तक सोये रहते हैं और आप घर लौटकर आते हैं तब तक बच्चे सो जाते हैं। इसलिए दादा-दादी के अनुभवों से बच्चों को संस्कारित होने दीजिए। बुजुर्ग फल भले ही न दे पाते हों, पर अपने अनुभवों की छाँव तो अवश्य देंगे। बच्चों को कहानियाँ प्रिय हैं। उन्हें रामायण, महाभारत, श्रवणकुमार, प्यासा कौआ, शेर और चूहा, कछुआ और खरगोश की कहानियाँ सुनाया करें। एक अच्छी कहानी सौ उपदेशों से कहीं अधिक प्रभावी होती है।
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