Book Title: Chaityavandan Chauvisi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 12
________________ [६] चैत्यवंदन केवल कमला कांत दांत, अरिहंत गुण अनंत, ज्ञान नयनथी जगत रूप, योगी निरखंत...२... कुंथुनाथ नाम मंत्रथी अ, शिवनारी वश होय, राम परमपद थी अधिक, मुख सन्मुख प्रभु जोय...३... . अरनाथ नु [१८] श्री अरनाथ अनाथनाथ, नायक शिवपुरनो, पूर्ण सनाथता गुण सहित, आशी नहीं परनो...१... ध्यान भुवन अनुभव उद्योत, अकांते विलासे, मन शुद्ध जिनगुण रयण, ध्याओ उल्लासे...२... ओ माला अनुपम कहिले, अपरमाल सवि आल, राम कहे जिन ध्यानथी, दूर टळे जंजाल...३... मल्लिनाथ - [१६] कर्मद्रुम उन्मूलवा, जे सिंधुरमल्ल, मल्लि जिनेसर मोहशं, जेह थयो प्रतिमल्ल...१... कुंभ जाति अन्वय खरो, जिणे भवोदधि शोष्यो, मित्र अतिथिने प्रेमथी, अनुभव रस पोष्यो...२. समता रस आस्वादतांबे, लहे शिवपदवी सारी, राम कहे जिन नामथी, हुं जाऊं बलिहारी...३... मुनिसुव्रत न [२०] मुनिसुव्रत जिन वीसमा, सेव्या सुख लहिये, मुगति रमणीनो रमण, तस ध्याने रहिये...१ कच्छप लंछन निर्विकल्प, निर्मोही अकोही, लंछन रहित बिराजमान, शामल जस देही...२... Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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