Book Title: Chaityavandan Chauvisi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 59
________________ चोवीसीः [५३] चंद्रप्रभु नु[८] श्री चंद्रप्रभ राय काय, जस. उज्ज्वल वरणो, मुगट कुंडल ने हार तपे, मुख तेज सो तरणी...१... आंगी बनीय अपार, पुष्प तो पंचे वरणा, तिलक बन्यो अति सार, वळी विविध आभरणा...२... अगर धूप आरती, दीप ज्योति तो प्रगटी, ऋषभ कहे जिन पूजतां, पाप पूर गया घटी...३... सुविधिनाथ नु [६] सुविधिनाथ जिन जाप, जपो जाणे योगींद्र, सुर नर किन्नर सोय, धरे ध्यान बहु इंद्र...१... नरनारी ऋषिराय प्रभु, तुज ध्यान सो ध्यावे, चक्री ने बलदेव सोय, बेठा गुण गावे...२... त्रण भुवनमां निरखतां, अवर न बीजो केवली, कविऋषभ कहे जिन पूजतां,पापगया सवि परजली..३... शीतलनाथ नु [१०] शीतल नामुं शीष, जपो जाप जगदीश, देखी ताहरू रूप, ब्रह्म उर लाज्यो इश...१... इंद्र चंद्र नागेंद्र, सोय नर नाम कहायो, नहीं जग एहवो देव, सम कोई ताहरे आव्यो.. तेज सबल तुझ देव, लाज्यो सुर गगने भमे, ऋषभ कहे जगते वडो, जे श्री जिनचरणे नमे. श्रेयांसनाथ - [११] सुगुण पुरुष श्रेयांस, सिंहपुरी नरनाथ, कनक वर्ण जस देह राय, विष्णु तुज तात...१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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