Book Title: Chaityavandan Chauvisi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 54
________________ [ ४८ ] दशलाख वरसनुं आउखु, वपु धनु पिस्तालिश, रत्नपुरी नो राजियो, जगमां जास जगीश...२... धर्म मारग जिनवर कहेओ, उत्तम जन आधार, तिणे तुज पाद पद्म तणी, सेवा करू निरधार...३... शांतिनाथ नुं [१६] शांति जिनेसर सोलमा, अचिरा सुत वंदो, विश्वसेन कुल नभोमणि, भविजन सुख कंदो... १... मृग लंछन जिन आउखु, लाख वरस प्रमाण, हत्थिणाउर नयरी धणी, प्रभुजी गुणमणि खाण...२... चालीश धनुषनी देहडोओ, सम चउरस संठाण, वदन पद्म ज्युं चंदलो, दोठे परम कल्याण. कुंथुनाथ तु [१७] कुंथुनाथ कामित दीये, गजपुरनो राय, सिरि माता उरे अवतर्यो, सुर नरपति ताय... १... काया पांत्रीश धनुषनी, लंछन जस छाग, केवल ज्ञानादिक गुणो, प्रणमो धरी राग...२... सहस पंचाणु वरसनु ओ, पाली उत्तम आय, पद्मविजय कहे प्रणमिओ, भावे श्री जिनराय...३... अरनाथ नुं [१८] नागपुरे अर जिनवरू, सुदर्शन नृप नंद, देवी माता जनमिओ, भविजन सुख कंद...१... लंछन नंदावर्त्तनु, काया धनुषह त्रीश, सहस चोराशी वरसनु, आयु जास जगीश...२... For Private & Personal Use Only Jain Education International चैत्यवंदन .३... www.jainelibrary.org

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