Book Title: Chaityavandan Chauvisi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 18
________________ [१२] चैत्यवंदन . विमलनाथ - [१३] विमलनाथन विमल ज्ञान, दरसण जस विमल, आठ कर्ममल क्षय करी, आप थयो विमल...१... कंपिल्य कृतवर्म राय, कुल करियुं जेणे विमल, श्यामा राणी उदर हंस, सोवन वन विमल...२... साठ धनुष उन्नत तनु ओ, वरस साठ लख आय, सुवर लंछन शोभमान, मान नमे नितु पाय...३... अनंतनाथ नु [१४] जिन अनंतना गुण अनंत, न कहाये तंते, कर्म अनंते जीतियां, वरवोर्य अनंते.. नयरी अयोध्या नरपति, सिंहसेन तनुज, सुजसा राणी लाडलो, सिंचाणो उरुज...२... आयु वरस लख त्रोसर्नु, जीवित सोवन वान, धनुष पचास प्रमाण देह, ध्यान धरे मुनि मान...३... धर्मनाथ नु [१५] पनरमो जिन धरमनाथ, उपदेशे धर्म, जेह सुणीजे भावशुं, तस नाशे कर्म...१... रत्नपुरी वर भानुराय, सुव्रता सुत सारो, धणु पणयालीश उच्च देह, भव जलनिधि तारो...२... वरस लाख दश आउखुंओ, वज्र लंछन हेम वान, मान कहे जिनवर विषे, मन धरिले बहुमान...३... शांतिनाथ नु [१६] शांतिकरण श्री शांतिनाथ, जेणे मारि निवारी, अचिरा कुख उपनो, मृग लंछन धारी...१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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