Book Title: Chaityavandan Chauvisi
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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[४]
चैत्यवंदन
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दृढरथ जात जुहारतां अ, जगमांहि जश पूर, राम प्रभु सेवा थकी, नाठा दुश्मन दूर...३...
श्रेयांसनाथ नु [११] श्रेय तणो दातार जे, जिनवर श्रेयांस, संयम सिरि वनिता शिरे, सोहे अवतंस...१... रूपातीत रमा विनोद, रसमांहे भीनो, सकल वस्तु विषयी विलास-व्यापारे न लोनो...२... अम अनेक गुणे भर्यो अ, कहेता न लहे पार, राम कहे जिनवर नमी, सफल करू अवतार...३...
वासुपूज्य नु [१२] वासुपूज्य वसुपूज्य नप-सुत अति सोभागी, जपतां जिनवर नामने, शुभ परिणती जागी...१... ध्यान धरू हवे ताहरू, करी मन इकतारी, हृदय-कमल माहे वसे, तुज मूरति प्यारी...२... द्वादशमां जिनवर सुणोओ, टाळो मननो आधि, सुमति सहित प्रभु सेवतां, लहिये सुख निराबाधि...३.
विमलनाथ नुं [१३] विमल-विमल कांते करी, झगमग तनु सोहे, रतन जडित शिर मुगट देखी, मानव मन मोहे...१. अतुली बल अरिहंतजी, अकल अध्यातम रूपी, निर्विकार निरुपाधिक, गुणयोगी अरूपी...२... तेरमा जिन त्रिभुवन घणीओ,सेवक सुनजर जोय, चिदानंदरस पूरमय, राम सकल सुख होय...३...
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