________________
[८]
क खरतरगच्छ, तपगच्छ, अंचलगच्छादि सब गच्छवालोंके वा. क्योंका संग्रह इसग्रंथम करने में आया है । मगर अमुक गच्छवालेके अमुक आचार्यके वाक्य हमको मंजूर नहीं, ऐसा एकांत आग्रह किली जगहभी करनेमें नहीं आया. और शास्त्रविरुद्ध युक्ति बाधित वाक्य तो कोईगच्छवालेकाभी मान्य करना योग्य नहीं. यह बात सर्व जन सम्मतहीहै, वोही न्याय इस ग्रंथमें रखा गया है. इसलिये पाठकगणको किसी गच्छ समुदायका पक्षपात न रखकर अवश्य संपूर्ण अवलोकन करके सार निकालना चाहिये.
इस ग्रंथका लेखक में खास संसारीपनेमे तपगच्छका वीसापोरघाल श्रावकथा मगर उपाध्यायजी श्रीसुमतिसागरजी महाराजके पास श्रीसिद्धक्षेत्र (पालीताणा) में विक्रम संवत् १९६० वैशाख शुदी २ को खरतरगच्छमें दीक्षा अंगीकार की,तो भी दोनों गच्छोंके पूर्वा. चार्योंपर तथा वर्तमानिक मुनिमहाराजोपर पूज्यभाव था, और हेभी । मगर जिस २ अंशमे शास्त्र विरुद्ध जिस २ बातोंका झूठाही आग्रह किया गया है,उन २ बातोंकी आलोचना करके शास्त्रानुसार सत्य बाते जनसमाजमें प्रकट करना, यह मैरा खास कर्तव्य समझ कर मैने इस ग्रंथमें इतना लिखाहै। इसमे किसीका पक्षपात न समज ना चाहिये. और किसीको नाराज होनेकाभी कोई कारण नहीं है। वर्तमानिक समयके अनुसार परंपराकी अंधरूढीको त्यागना और सत्यको ग्रहण करना, सब सज्जनोंको प्रिय है । और समय बदलता जाता है. संपसे शासन्नोनतिके कार्य करनेकी बहुत जरुरत है, इसलिये कुसंप वढानेवाला पर्युषणाके व्याख्यानमे आपसका खंडन मंडन चलाना योग्य नहीं है. विशेष दूसरे, तीसरे और चौथे भागमे अनुक्रमसे लिखनेमे आवेगा।
क्षमा याचना तथा अपनी भूल स्वीकार । इसग्रंथकी रचना करते समय मैरी अल्पवय व अल्प अभ्यास होनेसे, इसग्रंथमे-लेखक दोष, भाषादोष, दृष्टिदोष, पुनरुक्ति दोष, प्रेसदोष व शास्त्रीय पाठोकी विशेष अशुद्धताके दोषोंकी पाठक गण अवश्य क्षमा करें तथा हंसकी तरह दोष त्यागकर सार ग्रहण करें, और सुधारकर घांचे; दूसरी आवृत्तिमें इन दोषोंका संशोधन अच्छी तरहसे करने में आवेगा
और सुबोधिका व दीपिका, किरणावली आदिक शास्त्र विरुद्ध जो जो बातें लिखी हैं, उन सब बातोंका निर्णय इस ग्रंथमें लिखा
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com