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जब पर्युषणा पर्वभी नहीं हो सकते. ऐसा कहनाभी शास्त्र विरुद्ध है, मुहूर्त्तवाले विवाहादि तो मलमास, अधिकमास, क्षयमास, १३ महिनोंके सिंहस्थ, अधिकतिथि, क्षयतिथि, गुरुशुक्रका अस्त और हरि शयनका चौमासा वगैरह कितनेही तिथि-वार-नक्षत्र-मास वगै. रह योगोंमें नहीं किये जाते, मगर बिना मुहूर्त्तके धर्मकार्य करने में तो किसी समयका निषेध नहीं हो सकता इसी तरह पर्युषणा पर्वभी अधिकमासमे,१३ महीनोंके सिंहस्थमें, और चौमासे में करनेमे आते हैं । इसमें अधिकमहीना या कोईभी योग बाधक नहीं हो सकता. इसका विशेष खुलासा पृष्ठ १९३ से २०४ तक देखोः- .
११- अधिकमहीनेको वनस्पतिभी अंगीकार नहीं करती ऐसा कहनाभी शास्त्र विरुद्ध है, अधिक महीनेके ३० दिन तो क्या १ दिन मात्रभी वनस्पति नहीं छोड़ सकती, किंतु हरेक समय प्रत्येक दिवसको अंगीकार करती है. इसका विशेष खुलासा पृष्ठ २०५ से २१० तक देखो.- इत्यादि मुख्य २ बातों संबंधी शास्त्रीय प्रमाण और युक्तिपूर्व क इस प्रथमभागमें अच्छीतरहसे खुलासापूर्वक लिखनेमें आया है.
और इस ग्रंथको पक्षपात रहित होकर संपूर्ण पढनेवाले सजनाको सत्यासत्यकी परीक्षा स्वंय होसकेगी, इससे यहांपर विशेष लिखने की कोई अवश्यकता नहीं है।
ग्रंथकारका उद्देश क्या है ? इस ग्रंथकारका मुख्य उद्देश यहीहै, कि-सबगच्छवाले संपपूर्वक सुखशांतिले धर्म कार्य करे, मगर पर्युषणा जैसे धार्मिक शांतिकेदि. नोमें अधिक महिनेके ३० दिनोंको धर्मकार्यों में गिनती से छोड देने के लिये तपगच्छके मुनिमहाराज जो खंडन मंडनका विषय व्याख्यानमें चलाते हैं, सो सर्वथा शास्त्र विरुद्ध है.और समयके प्र. तिकूल होनेसे कर्मबंधन, कुसंप व शासनहिलना कराने वालाहै (इसीका निर्णय इस ग्रंथमे अच्छी तरहसे लिखा गया है) उसको (इस ग्रंथके वांचे बाद ) अवश्य बंध करना योग्य है.
पक्षपात रहित ग्रंथकी रचना ___ " पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु । युति मेंद्वचनं यस्य, तस्य कार्यः परिग्रहः ॥१॥" इत्यादि महापुरुषोके न्यायानुसार पक्षपात रहित होकर आगम पंचांगी सम्मत युक्ति
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