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रु है. इसका विशेष खुलासा देखो दोनों चूर्णिके विस्तार पूर्वक पाठों सहित पृष्ठ ९१ से १०६ तक
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- जैन टिप्पणामें अधिक महीना होताथा तबभी २० वे दिन श्रावण शुदी पंचमीको पर्युषणा वार्षिक कार्य होतेथे, इसलिये २० वे दिनकी पर्युषणामें वार्षिक कार्य नहीं हो सकते, ऐसा कहनाभी शास्त्र विरुद्ध है इसका विशेष खुलासा देखो पृष्ट १०७ से ११७ तक.
६- श्रावण भाद्रपद या आश्विन बढे तो भी ५० वे दिन पर्युषणापर्व करनेसे शेष कार्तिक तक १०० दिन होते हैं जिसपर भी ७० दिन रहनेका आग्रह करते हैं सोभी शास्त्र विरुद्ध है ७० दिन मास वृद्धि के अभाव संबंधी हैं और मास वृद्धि होवे तब १०० दिन रहना शास्त्रानुसार है । इसका विशेष खुलासा पृष्ठ ११७ से १२८ तक, तथा १७४ से १८५ तक देखो.
७ अधिक महीना होनेसे उस वर्ष में १३ महीने तथा चौमा सेमै ५ महीने होते हैं. तब उतनेही महीनोंके कर्मबंधनभी होते हैं, जिसपर भी १२ महीनोंके क्षामणे करने कहते हैं. सो भी शास्त्र विरुद्ध है. अधिक महीना होवे तब १३ महीनोंके क्षामणे करना शास्त्रानुसार हैं; इसका विशेष खुलासा पृष्ठ १३३ से १३६ तक तथा १७० से १७१ तक और पृष्ठ ३६२ से ३७८ तक देखो.
८ अधिक महीने में सूर्यचार नहीं होता ऐसा कहनाभी शास्त्र विरुद्ध है, छछ महीने १८३ वे दिन, सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायनमें और उत्तरायनसे दक्षिणायनमें हमेशा होता रहता है, उसमें अधिक महीने के ३० दिनोंमें भी जैनशास्त्र मुजब या लौकिक टिप्पणा मुजब भी सूर्यचार होता है. इसका विशेष खुलासा देखो पृष्ठ १३७ से १३९ तक
९ अधिक महीने के ३० दिनोंमें देवपूजा मुनिदान वगैरह धर्मकार्य करने, मगर उसके ३० दिनोंकों गिनती में नहीं लेनेका कहना, सो भी शास्त्र विरुद्ध है । जितने रोज देवपूजादि धर्मकार्य किये जावेंगे, उतने दिन अवश्यही गिनती में लिये जावेगें, और जैसे मुनिदानादि दिन प्रतिबद्ध हैं, वैसेही पर्युषणाभी ५० दिन प्रतिबद्ध है. इसका विशेष खुलासा पृष्ठ १४२ से १४३ तक देखो
१० अधिक महिने में विवाहादि शुभकार्य नहीं होते, उसमु
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