Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 16
________________ युवक ने कहा - "अभी मुझे अच्छी तरह लिखना नहीं आता है अतः मेरी पुस्तक को कोई प्रकाशक छापने के लिए तैयार नहीं होगा। मुझे ज्ञात है कि इस देश में आपके बहुत दुश्मन हैं, यदि मैं आपकी मजाक उड़ाने वाली पुस्तक लिखूँ तो मुझे अच्छा पैसा मिल सकेगा ।" डिडेरो ने मुस्कराते हुए कहा - "यह तुमने बहुत ही अच्छा किया है, पर एक कार्य तुम और करो। चूँकि प्रस्तुत पुस्तक छपाने के लिए तुम को पैसा भी चाहिए न ? एक उपाय बताता हूँ । एक व्यक्ति से मेरा धर्म के सम्बन्ध में तीव्र मतभेद है । वह मुझ पर अत्यधिक अप्रसन्न है । तुम यह पुस्तक उसे समर्पित कर दो। वह अत्यन्त प्रसन्न होकर तुम्हें अवश्य ही अर्थ सहयोग देगा | इसलिए तुम शीघ्र ही शानदार समर्पण-पत्र लिख दो ।" युवक ने कहा - "पर, मुझे सुन्दर समर्पण-पत्र लिखना कहाँ आता है ?" डिडेरो ने कहा - " तो तुम ठहरो! मैं ही तुम्हें अच्छा समर्पण-पत्र लिख देता हूँ जिससे तुम्हें खासी अच्छी रकम मिल जाय । उन्होंने उसी समय उसे समर्पण-पत्र लिखकर दे दिया । यह थी डिडेरो की महानता ! Jain Education International बिन्दु में सिन्धु For Private & Personal Use Only ३ www.jainelibrary.org

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