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आत्मा से परमात्मा
एक सन्त के पास एक जिज्ञासु पहुँचा और उसने कहा"आत्मा को परमात्मा कैसे बनायें ? कृपया सरल मार्ग प्रदर्शित कीजिए।"
उसी समय सन्त के सामने ही एक कलाकार मूर्ति का निर्माण कर रहा था, सन्त ने जिज्ञासु का ध्यान उधर आकषित करते हुए कहा-"यह कलाकार पत्थर से मूर्ति बना रहा है। वह पत्थर के अनावश्यक अंश को काटकर सुन्दर आकृति बना रहा है, वैसे ही हमें भी राग-द्वष का अनावश्यक अंश काटना है, भेद-विज्ञान या तप-जप से उसको काटकर अलग करना है। जितना अंश अलग होगा, उतना ही परमात्म भाव हमारे भीतर प्रकट होगा।" ६६ बिन्दु में सिन्धु
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