Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 98
________________ के मन में विचार आया कि मैं भी हाथी दाँत का च ड़ा पहन और लोगों से बधाइयाँ प्राप्त करूँ। ___ वह अपने घर गई, पति से हाथी दाँत का चड़ा लाने के लिए कहा। __ पति ने कहा-घर में चूहे एकादशी करते हैं । कई दिनों तक खाना भी नहीं मिलता और तुझे चाहिए हाथी दाँत का चूड़ा। स्त्री-जब तक चड़ा न आयेगा, तब तक भोजन न बनेगा? पति ने उसको विविध प्रकार से अपनी आर्थिक स्थिति समझाई, तथापि वह न मानी। अन्त में वह बाजार गया और किसी सेठ से कर्जा लेकर हाथी दाँत का चूड़ा खरीद कर लाया । उसने बड़ी प्रसन्नता से वह चूड़ा पहना और झोंपड़ी के बाहर द्वार पर आकर बैठ गई । उसने हाथों को लटका कर चड़ा दिखलाने का प्रयास किया, किन्तु कोई भी उसके चूड़े को देखने के लिए नहीं आया । एक दिन बीत गया, दूसरा दिन भी इसी प्रकार चला गया । उसके मन में प्रदर्शन की आग भड़क रही थी। वह लोगों को अपना चूड़ा दिखाना चाहती थी। उसने तीसरे दिन हाथ में दियासलाई ली और झोंपड़ी को सुलगा दी । देखते ही बिन्दु में सिन्धु ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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