________________
देखते आग की लपटें आकाश को स्पर्श करने लगी। लोग दौड़े, किसी भी प्रकार प्रयत्न कर आग को बुझाई, किन्तु झोंपड़ी राख हो गई थी। लोगों ने सहानुभूति के स्वर में कहा-पहले से ही यह कितनी गरीब थी, और फिर कैसा भयंकर वज्रपात हुआ है कि जो कुछ था वह सभी जल कर नष्ट हो गया। लोग संवेदना प्रकट कर रहे थे पर उस स्त्री के मन में अशान्ति थी, वह चाहती थी कि कोई भी उससे उस चूड़े के सम्बन्ध में पूछे ।
लोगों ने पूछा-बहन ! बताओ कुछ बचा है या नही ?
उसने अपने हाथ को आगे करते हुए कहा-केवल यह चड़ा बचा है, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचा ।
पड़ौस की औरतों ने आश्चर्यपूर्वक पूछा-अरे ! यह तेने कब पहना ? बड़ा सुन्दर है !
वह बोली-यदि यह बात तुम पहले ही पूछ लेते तो मैं अपनी झोंपड़ी क्यों जलाती।
लोग उसकी मूर्खता पर हँस पड़े, लोगों की सहानुभूति आक्रोश के रूप में परिवर्तित हो गई। __ आज भी ऐसे हजारों मूर्ख हैं जो घर को आग लगा कर मिथ्या प्रदर्शन करते हैं।
८६
बिन्दु में सिन्धु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org