Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 111
________________ पानी आता हुआ दिखलाई नहीं दिया और जोर-जोर से नगाड़े बजने की आवाज आने लगी । वह देखने लगा कि यह असमय में कहाँ पर उत्सव हो रहा है। बादशाह पूछना चाहता ही था कि दस बारह अनुचर उपस्थित हुए। किसी के हाथ में कीमती रूमाल चमक रहा था, तो किसी के हाथ में पानदान था। कुछ सेवक आगे बढ़, हाथ में चाँदी के थाल चमचमा रहे थे उनमें सोने की ग्लासे सजाकर रखी थीं और उनमें सुगन्धित पानी था वह बड़े कीमती वस्त्र से ढका हुआ था। नादिरशाह ने देखा यह सारा आडम्बर केवल पानी पिलाने के लिए किया जा रहा है। उसे विलासितापूर्ण आडम्बर से नफरत हो गई। उसने कहा—मैं ऐसा पानी नहीं पीता। नादिरशाह ने अपने भिश्ती को आवाज दो, वह शीघ्र ही चमड़े के मशक में पानी ले आया और नादिरशाह ने अपने सिर से लोहे का टोप उतारा और उसमें पानी भर कर पी लिया । मुहम्मदशाह की ओर देखकर नादिरशाह ने कहा-मुझे तुम्हारे पराजय का कारण ज्ञात हो गया। यदि हम भी तुम्हारी तरह पानी पीते तो ईरान से हिन्दुस्तान तक नहीं आ सकते थे। १८ बिन्दु में सिन्धु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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