Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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गौरव का मूल : पुरुषार्थ
इफ्रिकेटिस यूरोप का एक प्रसिद्ध सेनापति था। उसकी जाति चमार थी किन्तु प्रबल पुरुषार्थ से वह इस महान् पद पर पहुँच गया। __ उस समय दूसरा सेनापति हार्मोदियस था, वह उच्च कुल में पैदा हुआ था। उसे अपनी जाति पर घमण्ड था । जब वह चमार सेनापति की कीर्ति सुनता तो उसका चेहरा मुरझा जाता।
एक दिन उसने ईर्ष्या से जलकर इफ्रिकेटिस से कहातुम चाहे कितने भी बढ़ जाओ किन्तु इससे तुम्हारी चमार जाति का गौरव नहीं बढ़ सकता।
इफ्रिकेटिस ने मुस्कराते हुए कहा-मित्रवर ! लगता है तुम्हारे से अब तुम्हारे कुल के गौरव का अन्त आ रहा है और मेरे से मेरे कुल के गौरव का प्रारंभ हो रहा है। ___मित्र ! तुम भूल रहे हो कुल और जाति से किसी को गौरव नहीं मिलता । गौरव मिलता है साहस और पुरुषार्थ से।
बिन्दु में सिन्धु
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