Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 91
________________ उत्तराधिकारी चतुर्थ सिख गुरु रामदास जी तृतीय गुरु अमरदास जी के दामाद थे । एक दिन पुत्र और शिष्यों को परीक्षा के लिए अमरदास जी ने आज्ञा प्रदान करते हुए कहा कि अपने बैठने के लिए चबूतरा बनाओ । ज्यों ही आज्ञा प्राप्त होते ही चबूतरा तैयार हो गया। तैयार होने पर उसे पुनः गिरा दिया गया और दुबारा बनाने की आज्ञा दी गई। इस बार भी गुरु जी ने उसे गिरा दिया और फिर से बनाने का आदेश दिया। सारे दिन इस प्रकार चबूतरे बनते और बिगडते रहे । कुछ लोग नाराज हो गये, क्या गुरुजी का दिमाग बिगड़ गया है ? केवल रामदास जी हो ऐसे थे जो हर बार उसी उत्साह से चबूतरा बना रहे थे। गुरुजी ने पूछा--रामदास ! तुम अब भी चबूतरा बना रहे हो? जबकि दूसरे सारे शिष्य काम छोड़कर भग गये हैं। रामदास ने नम्रतापूर्वक निवेदन करते हुए कहाशिष्य का कर्तव्य गुरु के आदेश का पालन करना होता है । भले ही प्राण चले जायें किन्तु गुरु का दिया हुआ काम छोड़ नहीं सकता । गुरु अमरदास ने उसी समय रामदास को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। ७८ बिन्दु में सिन्धु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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