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कर्तव्य
सिकन्दर अपने गुरु अरस्तु के साथ बियावने जंगल में से जा रहे थे । मार्ग में उफनता हुआ बरसाती नाला मिला। नाले को देखकर सिकन्दर ने कहा पहले मैं नाला पार करूंगा तो अरस्तू ने कहा मैं । दोनों में विवाद छिड़ गया। सिकन्दर जब अड़ गया तो अरस्तू ने उसे प्रथम पार करने की आज्ञा दे दी।
नाला पार करने के पश्चात् अरस्तू ने कहा-सिकन्दर ! क्या तुमने आज मेरा अपमान नहीं किया।
सिकन्दर ने अरस्तु के चरणों में सिर झुकाते हुए कहानहीं गुरुदेव ! मैंने अपने कर्तव्य का पालन किया है क्योंकि अरस्तू रहेगा तो हजारों सिकन्दर तैयार हो सकते हैं, किन्तु सिकन्दर रहने पर एक भी अरस्तू तैयार नहीं हो सकता।
बिन्तु में सिन्धु
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