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कर्तव्य-निष्ठा
लेकि
पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल को जिस दिन फाँसी मिलने वाली थी, उस दिन बिस्मिलजी अपने कमरे में दण्ड-बैठक लगा रहे थे । जेलर यह देखकर हैरान था । उसने उनसे पूछा - "आज तो आपको फाँसी होने वाली है, इन बैठकों से आपको क्या लाभ ?"
बिस्मिलजी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया – “ फाँसी लग रही है तो क्या हुआ, उसके लिए मैं अपना प्रतिदिन का नित्य कर्म क्यों छोड़ ? अपने नियम क्यों तोड़ ?” फिर भगवान की पूजा-अर्चना की और बढ़िया नये वस्त्र पहनकर फाँसी के तख्ते को चूमने के लिए जेलर के साथ चल दिये ।
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बिन्दु में सिन्धु
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