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सफलता का राज
है
__ महान् मूर्तिकार एडिन महान् लेखक स्टीफेन ज्विग को अपनी कला शाला दिखाने के लिए ले गये। जिस मूर्ति को उन्होंने बड़े कलात्मक ढंग से निर्मित किया था, उसके सामने ज्योंही वे उपस्थित हुए त्योंही उन्हें उसके कन्धों को अपूर्णता का ध्यान हुआ और वे तत्क्षण उसके कन्धों की सुघड़ता के लिए अपनी छैनो और हथौड़ो लेकर ठुकठूक करने में तल्लीन हो गये-कभी इधर, कभी उधर, कभी यहाँ और कभी वहाँ, कलाकार की सूक्ष्म निगाह से . उसे ठीक करने में पूरा एक घंटा हो गया तब उनके मुंह से निकला-'अब ठीक है।' फिर वे ज्योंही पीछे मुड़े तो ज्विग खड़े दिखाई दिये । कलाकार भौंचक्का और संकुचित होकर बोला- "मुझे इसके कंधे ठीक करने में स्मरण हो न रहा कि आप मेरे साथ आए हैं।" ज्विग ने प्रसन्न होकर कहा-'मुझे अनायास ही आज आपकी सफलता का रहस्य ज्ञात हो गया है और वह रहस्य है आपकी ‘एकाग्रता' ।
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बिन्दु में मिन्धु
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