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निंदक का कोई स्मारक नहीं !
फिनलैण्ड के विश्व-विश्रुत संगीतकार सिविलियस से एक बार एक नौसिखिया संगीतज्ञ मिलने आया। उसने वार्तालाप के प्रसंग में कहा--"कुछ आलोचक मेरी इतनी तीव्र आलोचना करते हैं कि मैं उसे सुनकर तिलमिला उठता हूँ और अत्यन्त निराश हो जाता हूँ। बताइये मुझे क्या करना चाहिए ?"
सिविलियस ने कहा - "मित्र ! तुम्हें कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है, तुम उन आलोचकों की बातों पर ध्यान ही न दो और यदि तुम्हारी कुछ भूल है तो उसे सुधार लो। तुम्हें स्मरण रखना चाहिए कि आज दिन तक किसी आलोचक के सम्मान में कोई भी स्मारक नहीं बनाया गया है और न ही उसकी मूति बनाकर किसी ने उसकी पूजा की है। संसार में निन्दक तो हमेशा घृणा की दृष्टि से ही देखा जाता है।"
बिन्दु में सिन्धु
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