Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 40
________________ वह कुछ दूर गया था कि उसके मन में विचार आया कि मैंने यह ठीक नहीं किया। वह उलटे पैरों वापस लौटा और पुनः भैंस को लाकर उसने सन्त की कुटिया के सामने बाँध दी। पर उसके मन में सन्तोष नहीं हुआ। अपने अपराध की क्षमा माँगने के लिए वह जहाँ पर तुकाराम कीर्तन कर रहे थे, वहाँ पर सीधा पहुँचा। उसने तुकाराम के चरणों पर गिरकर अपने अपराध की क्षमा माँगी। तुकाराम ने कहा- "भाई ! तुम्हें यदि भैंस की आवश्यकता हो तो उसे सहर्ष ले जाओ।" पर वह अब कहाँ ले जाने वाला था ? दूसरे ही दिन से सन्त तुकाराम अपनी आवश्यकतानुसार भैंस का दूध रखकर शेष दूध अपने अड़ोसी-पड़ोसी को बाँटने लग गये। तुकाराम ने सोचा कि मेरे परिग्रह के कारण ही उस चोर के मन में चोरी करने की भावना पैदा हुई थी। यदि पहले से ही दूध का वितरण कर देता तो वह भैंस को नहीं चुरा ले जाता। बिन्दु में सिन्धु २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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