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दर्पण में चेहरा क्यों देखना चाहिए?
महान् दार्शनिक सुकरात अपने कमरे में बैठे थे और बार-बार वे दर्पण में अपना मुंह देख रहे थे । सुकरात का चेहरा बड़ा ही कुरूप था । वे बार-बार अपने चेहरे को क्यों देख रहे हैं ? यह उनके शिष्यों को समझ में नहीं आ रहा था। आखिर उन्होंने सुकरात से पूछ ही लिया-"आप अपना चेहरा बार-बार दर्पण में क्यों देख रहे हैं ?"
सुकरात ने कहा-"चेहरा सुन्दर हो या कुरूप, सबको दर्पण में देखना चाहिए।"
एक शिष्य बोल उठा- "गुरुवर ! कुरूप तो अपनी वास्तविकता को जानता ही है, दर्पण में अपने कुरूप चेहरे को देखकर उसे अत्यधिक दुःख होगा।" ।
सुकरात ने कहा- "वत्स ! कुरूप को दर्पण में इसलिए देखना चाहिए कि अपने रूप को देखकर उसे यह ध्यान आ जाय कि वह वस्तुतः कुरूप है । अतः अपने श्रेष्ठ कार्यों से उस कुरूपता को सुन्दर बनाकर उसे ढकने का प्रयास करे। सुन्दर चेहरे वाले को दर्पण में इसलिए देखना चाहिए कि उसका चेहरा सुन्दर है अतः वह सदैव सुन्दर कार्य ही करे।"
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बिन्दु में सिन्धु
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