Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 49
________________ सिद्धान्त-निष्ठा लालबहादुर शास्त्री नैनी जेल में थे । उस समय उनकी पुत्री पुष्पा अत्यधिक बीमार हो गई और उसकी दशा चिन्तनीय हो गई। उनके स्नेही साथियों के अत्यधिक आग्रह पर शास्त्री जी जेल से बाहर आकर अपनी पुत्री की सेवा शुश्रुषा करने के लिए प्रसन्न हुए। पैरोल ने बिना किसी शर्त के स्वीकृति प्रदान की। ___शास्त्री जी घर पर पहुँचे, कुछ समय के पश्चात् उनकी पुत्री ने सदा के लिए आँखें मूंद ली। शास्त्री जी उसकी अन्तिम क्रिया कर लौटे, पर घर में नहीं गये, अपना सामान उठाकर वे ताँगे में बैठ गये । लोगों ने कहा अभी तक पैरोल बाकी है, किन्तु शास्त्री जी ने दृढ़ निश्चय के साथ कहा-मैं जिस कार्य हेतु पैरोल पर छूटा, वह कार्य समाप्त हो गया अतः सिद्धान्त को दृष्टि से मुझे जेल में जाना चाहिए। और वे जेल की ओर बढ़ गये, यह थी शास्त्रीजी की सिद्धान्त-निष्ठा । ३६ बिन्दु में सिन्धु - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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