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प्रामाणिकता
लालबहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमन्त्री थे, वे एक साड़ियों के कारखाने का निरीक्षण करने गये । साड़ियाँ देखकर उन्हें विचार आया कि परिवार वालों के लिए कुछ साड़ियाँ खरीद लें, पर साड़ियाँ बहुत ही महँगी थीं। उन्होंने कारखाने के मालिक से कहा-भाई ! कुछ सस्ती साड़ियाँ हों तो बताओ, जो मुझ जैसा गरीब आदमी भी खरीद सके।
मिल-मालिक ने कहा-आप मूल्य की चिन्ता न करें। आपको जो भी साड़ियाँ पसन्द हों, चुन लीजिए। जिससे हमें भी भारत के प्रधानमन्त्री को कुछ भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हो।
शास्त्रीजी ने दृढ़ता के साथ कहा-मैं जिस वस्तु को लेना चाहता हूँ, वह अपने परिवार के लिए लेना चाहता हूँ, उससे प्रधानमन्त्री का कोई सम्बन्ध नहीं है। साड़ियाँ खरीदकर ही ली जायेंगी, मुफ्त में नहीं। यह थी शास्त्रीजी को प्रामाणिकता।
बिन्दु में सिन्धु ३६
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