Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 34
________________ जीवन और मृत्यु लाओत्से के एक शिष्य की मृत्यु हो गई। वे उसके घर पर गये। सारा परिवार शोकातुर था । लाओत्से ने उनसे पूछा- "बताओ, यह मृत है या जीवित है ?" विचित्र प्रश्न सुनते ही सभी लोग चकित हो गये कि यह कैसा विचित्र प्रश्न है ? महान् दार्शनिक के सामने लाश पड़ी है फिर भी पूछते हैं कि जीवित है या मृत है। कुछ क्षणों तक सन्नाटा छाया रहा, फिर लोगों ने लाओत्से से कहा ---"कृपया आप ही बताइये?" ___लाओत्से ने कहा-"जो पहले मृत था, वह आज भी मृत है, जो पहले जीवित था, वह आज भी जीवित है। केवल दोनों का सम्बन्ध टूट गया है । जीवन की कोई मृत्यु नहीं होती और मृतक का कोई जीवन नहीं होता। ____ जीवन को जो नहीं जानते, वे मृत्यु को जीवन का अन्त कहते हैं । जन्म जीवन का प्रारम्भ नहीं है और मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है । वह तो जन्म और मृत्यु के बाहर भी है और अन्दर भी है, वह जन्म के पहले भी है और पश्चात् भी है।" बिन्दु में सिन्धु २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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