Book Title: Bindu me Sindhu
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 29
________________ उसी समय वहाँ के बादशाह की सवारी निकलो। बहलूल की निराली हरकत को देखकर बादशाह को बड़ा हो आश्चर्य हुआ। उन्होंने बहलूल से पूछा- "तुम इन मुर्दो को खोपड़ियों में क्या खोज रहे हो ?' बहलूल ने जवाब दिया-“जहाँपनाह ! आपश्री के और मेरे पूर्वज यहाँ से विदा हो चुके हैं । मैं इन खोपड़ियों में ढढ रहा हूँ कि आपके पूर्वजों की कौनसी खोपड़ियाँ हैं और मेरे पूर्वजों की कौनसी हैं ?'' बादशाह ने खिल-खिलाकर कहा- "अरे बहलूल ! तुम नादानों की सी क्या बात कर रहे हो ! कहीं मुर्दा खोपड़ियों में भी फर्क हुआ करता है ?" । बहलूल बोला-"परवर दिगार ! फिर चार दिनों को झठी जिन्दगी के लिए सत्ता के नशे में उन्मत्त होकर आप क्यों दीन-हीन व्यक्तियों को कष्ट देते हैं ? क्यों उन व्यक्तियों के साथ अशिष्टतापूर्ण व्यवहार करते हैं ?" बादशाह यह सुनकर अपने कुकृत्यों पर लज्जित होकर लाजवाब हो गया। बहलूल की मीठी फटकार ने उसके जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया । १६ बिन्दु में सिन्धु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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