________________
सेवामूर्ति इब्राहिम
*
एक काफिले के साथ तपस्वी इब्राहिम यात्रा कर रहे थे। काफिले का एक व्यक्ति अत्यन्त रुग्ण हो गया। इब्राहिम रात-दिन उसकी सेवा करते थे । रोगी के उचित उपचार में अपने पास जो कुछ भी था, उन्होंने सब व्यय कर दिया, फिर भी जब रोगी पूर्ण स्वस्थ न हुआ तो इब्राहिम ने उसका खच्चर बेच दिया और उसके पथ्य आदि की व्यवस्था की। जब रोगी को होश आया तब उसने कहा-"अब मैं खच्चर के अभाव में कैसे यात्रा कर सगा ! मुझसे तो एक कदम भी नहीं चला जाता।"
इब्राहिम ने कहा- 'तुम चिन्ता न करो, खच्चर गया तो कोई बात नहीं, तुम मेरे कन्धों पर यात्रा करना ।"
सेवामूति इब्राहिम ने कई दिनों तक उसे कन्धों पर बैठाकर यात्रा को।
बिन्दु में सिन्धु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org