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क्षमा
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दयानन्द सरस्वती अपने गुरु बिरजानन्द जो की कुटिया में प्रतिदिन सफाई करते थे । एक दिन मकान का कूड़ा-कचरा दरवाजे के पास इकट्ठा करके वे अन्य काम में लग गये, कचरे को वहाँ से उठाना भूल गये ।
बिरजानन्दजी प्रज्ञाचक्षु थे, वे ज्योंही कुटिया से बाहर निकलने लगे कि उनके पाँवों में वह कूड़ा-कचरा आ गया । वे उबल पड़े, – “मूर्ख ! क्या कचरे को यहाँ रक्खा जाता है !" यह कहते हुए उन्होंने दयानन्द को जोर से दो-चार चाँटे भी लगा दिये ।
जब उनका क्रोध उतर गया तब दयानन्दजी ने उनके पैरों को पकड़कर कहा - " पूज्य गुरुदेव ! आप श्री का शरीर अत्यधिक कमजोर है । मुझे आप डण्डे से पीटिए, क्योंकि मैं तो मोटा-ताजा हूँ । आप श्री अपने कोमल हाथों को कष्ट मत दीजिए ।"
बिन्दु में सिन्धु
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