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नहीं खोली तो न जाने हमें आगे चल कर किस भयंकर समयका सामना करना पड़ेगा?
हम यहाँ नीचे एक कोष्टक देते हैं जिससे आपको पता लगेगा कि यहाँ अन्नकी कितनी कमी है।
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सन्
देशमें अन्नकी । देशमें अन्न आवश्यकता पैदा हुआ
देशमें अन्नकी
कमी
१९११-१२ १९१२-१३ १९१३-१४ १९१४-१५
५६५.. ५१९. ४९६१
७८.३ १०१० १४५'. १०४.३
६४१.१
६४९.१
५८४.३
६४.८
१९१६-१७ १९१७-१८
६४९.१
५७१३
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(स्मरण रहे यह संख्या लाख टनकी है और १ टन लगभग २७ मनका होता है।)
अब उक्र कमीकी पूर्तिक केवल दो ही उपाय हैं । (१) देशमें अनकी पैदावरी षढ़ाई जावे, (२) देशका अन्न बाहर नहीं जाने दिया जावे। पहला उपाय तो इस भूखे भारतके लिये कष्टसाध्य है; और ऐसी दशामें तो कष्टसाध्य क्या महान असाध्य है। क्योंकि यहाँके अनदाता कृष्णकोंकी बड़ी ही दुर्दशा है; वे अत्यंत दरिद्र हैं। अब केवल दुसरा उपाय रह जाता है। वही इस महान दुर्भिक्षके लिये अचूक इलाज है । यहाँकी कमीको देखते हुए यहाँका एक दाना भी विदेशको भेजना महान पाप है; और महान अन्याय है। ___ अब जरा नीचेका कोष्टक देखिए, इसमें यह दिखळाया गया है कि अमुक सन्में इतनी कमी होने पर भी इतना अन्न भूखे भारतका विदेशोंको भेज दिया गया।
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