Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[दकारादि
इस चूर्णको मंजनकी भांति लगानेसे दांतोंके
दशाष्टाचर्णम् समस्त रोग नष्ट होते और दांत साफ रहते हैं।
( यो. २. । ज्वर.) (खिड़िया और अन्य चीजेंाको अलग अलग (दशाष्टाङ्ग काथ देखिये ) पीसकर कपड़ छन करें। कपूर सबसे पीछे मिला।) । (२९४९) दाडिमकुसुमादियोगः (२९४७) दशमूलादिचूर्णम्
(वं. से. । क्षुद्र.) (वै. म. र. । प. ११)
दाडिमजकुसुमधन्वयासाभयाश्लक्ष्णचूर्णिता दशांघिकूष्माण्डलताकाणाम्
शिक्षा।
नखकोटिपूतिभागं शमयति च शूळ तत्क्षणतः॥ चूर्ण मधौ शोफजयाय लियात् ।
अनारके फूल, धमासा, और हर समान भाग दशमूल, पेठेकी बेल और अद्रक (सेठ)
लेकर महीन चूर्ण करें। समान भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
___ इसे नखमें भरनेसे उसके भीतरका सड़ा हुवा ____ इसे शहदमें मिलाकर चाटनेसे शोथ रोग नष्ट
मांस और पीड़ा नष्ट हो जाती है। होता है।
(२९५०) दाडिमचतुःसमपूर्णम् (२९४८) दशसारचूर्णम्
(भै. र. । बा. रो.) (र. र. स. । उ. खं. अ. १८)
जातिफलं त्रिदशपुष्पसमन्वितश्च । यष्टी द्राक्षाफलं धाच्या एलाचन्दनवासकम् ।
जीरञ्च टङ्कनयुतं चरकैः प्रयुक्तम् ॥ मधूकपुष्पं खजूरं दाडिमं पेषयेत्समम् ॥
एतद्रव्यचतुष्कश्चेद् दाडिमीफलमध्यगम् । सर्वतुल्या सिता योज्या पलार्ध भक्षयेत्सदा।
पुटपक्वं पयापिष्टं तदाडिमचतुःसमम् ।। दशसारमिदं ख्यातं सर्वपित्तविकारजित् ॥ ।
(पयोऽत्रच्छाग्यास्तस्यातिसारहरत्वात् । पयः मेहतृष्णाऽरतीश्चैव दाहं मछौँ ज्वरं जयेत् ॥
शब्दोऽत्र जल वाचकमिति च केचित् ।) ___ मुलैठी, मुनक्का (दाख), आमला, इलायची,
जायफल, लैंौंग, जीरा और सुहागा समान सफेदचन्दन, सुगन्धबाला, महुवेके फूल, खजूर
भाग लेकर पीसलें; फिर एक अनारको खाली करके और अनारदाना एक एक भाग तथा खांड इन |
(भीतरके बीज निकालकर) उसके भीतर यह चूर्ण सबके बराबर लेकर चूर्ण बनावें ।
भरदें और उसके मुंहको बन्द करके उसके ऊपर ____ इसमें से प्रतिदिन २॥ तोले की मात्रानुसार
पानीमें भीगी हुई मिट्टीका आधा अंगल मोटा लेप सेवन करने से समस्त पित्त विकार (गरमीके रोग), करके भूबल ( कण्डों की मन्दाग्नि ) में दबा दें। प्रमेह, तृष्णा, बेचैनी, दाह, मूर्छा और पित्तज्वर | जब मिट्टीका रंग लाल हो जाय तो अनारको नि. नष्ट होता है।
कालकर बकरीके दूध या पानीमें पीसलें । (व्यवहारिक मात्रा-१ तोला । अनुपान | इसके सेवनसे बालकांका अतिसार नष्ट होता शीतल जल या द्राक्षाका रस।)
} है। ( मात्रा-१ रत्ती ).
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