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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि इस चूर्णको मंजनकी भांति लगानेसे दांतोंके दशाष्टाचर्णम् समस्त रोग नष्ट होते और दांत साफ रहते हैं। ( यो. २. । ज्वर.) (खिड़िया और अन्य चीजेंाको अलग अलग (दशाष्टाङ्ग काथ देखिये ) पीसकर कपड़ छन करें। कपूर सबसे पीछे मिला।) । (२९४९) दाडिमकुसुमादियोगः (२९४७) दशमूलादिचूर्णम् (वं. से. । क्षुद्र.) (वै. म. र. । प. ११) दाडिमजकुसुमधन्वयासाभयाश्लक्ष्णचूर्णिता दशांघिकूष्माण्डलताकाणाम् शिक्षा। नखकोटिपूतिभागं शमयति च शूळ तत्क्षणतः॥ चूर्ण मधौ शोफजयाय लियात् । अनारके फूल, धमासा, और हर समान भाग दशमूल, पेठेकी बेल और अद्रक (सेठ) लेकर महीन चूर्ण करें। समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । ___ इसे नखमें भरनेसे उसके भीतरका सड़ा हुवा ____ इसे शहदमें मिलाकर चाटनेसे शोथ रोग नष्ट मांस और पीड़ा नष्ट हो जाती है। होता है। (२९५०) दाडिमचतुःसमपूर्णम् (२९४८) दशसारचूर्णम् (भै. र. । बा. रो.) (र. र. स. । उ. खं. अ. १८) जातिफलं त्रिदशपुष्पसमन्वितश्च । यष्टी द्राक्षाफलं धाच्या एलाचन्दनवासकम् । जीरञ्च टङ्कनयुतं चरकैः प्रयुक्तम् ॥ मधूकपुष्पं खजूरं दाडिमं पेषयेत्समम् ॥ एतद्रव्यचतुष्कश्चेद् दाडिमीफलमध्यगम् । सर्वतुल्या सिता योज्या पलार्ध भक्षयेत्सदा। पुटपक्वं पयापिष्टं तदाडिमचतुःसमम् ।। दशसारमिदं ख्यातं सर्वपित्तविकारजित् ॥ । (पयोऽत्रच्छाग्यास्तस्यातिसारहरत्वात् । पयः मेहतृष्णाऽरतीश्चैव दाहं मछौँ ज्वरं जयेत् ॥ शब्दोऽत्र जल वाचकमिति च केचित् ।) ___ मुलैठी, मुनक्का (दाख), आमला, इलायची, जायफल, लैंौंग, जीरा और सुहागा समान सफेदचन्दन, सुगन्धबाला, महुवेके फूल, खजूर भाग लेकर पीसलें; फिर एक अनारको खाली करके और अनारदाना एक एक भाग तथा खांड इन | (भीतरके बीज निकालकर) उसके भीतर यह चूर्ण सबके बराबर लेकर चूर्ण बनावें । भरदें और उसके मुंहको बन्द करके उसके ऊपर ____ इसमें से प्रतिदिन २॥ तोले की मात्रानुसार पानीमें भीगी हुई मिट्टीका आधा अंगल मोटा लेप सेवन करने से समस्त पित्त विकार (गरमीके रोग), करके भूबल ( कण्डों की मन्दाग्नि ) में दबा दें। प्रमेह, तृष्णा, बेचैनी, दाह, मूर्छा और पित्तज्वर | जब मिट्टीका रंग लाल हो जाय तो अनारको नि. नष्ट होता है। कालकर बकरीके दूध या पानीमें पीसलें । (व्यवहारिक मात्रा-१ तोला । अनुपान | इसके सेवनसे बालकांका अतिसार नष्ट होता शीतल जल या द्राक्षाका रस।) } है। ( मात्रा-१ रत्ती ). For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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