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चूर्णप्रकरणम् ] तृतीयो भागः।
[२७] (२९५१) दाडिमबीजादिप्रयोगः अपतन्त्रकहद्रोगश्वासघ्नं चूर्णमुत्तमम् ॥ (वं. से. । बालरो.)
अनारदाना, कालानमक ( सञ्चल ), सांठ, दाडिमस्य तु बीजानि जीरकं नागकेसरम्।। हींग ( भुना हुवा ) और अमलबेत समान भाग घूर्णः सशराक्षौद्रो लेहस्तृष्णाविनाशनः ॥ लेकर चूर्ण बनावें। ___ अनारदाना, जीरा और नागकेशरका चूर्ण इसके सेवनसे अपतन्त्रक, श्वास और हृद्रोग समान भाग तथा खांड सबके बराबर लेकर एक- नष्ट होता है । त्र मिलावें । इसे शहदमें मिलाकर चटानेसे बच्चों- ( मात्रा २-३ माशे । अनुपान उष्णजल की तृष्णा शान्त होती है।
या अदरकका रस ।) (मात्रा २ रत्ती । दिनमें ५-६ वार (२९.शामिानित
(२९५४) दाडिमादिचर्णम् (३) चटावें।)
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ७) (२९५२) दाडिमादिचूर्णम् (१) .
विडालकं दाडिमपृतना च ( वृ. नि. र. । अरुचि.; भा. प्र. । व. २
धात्रीसमेतं विदधीत चूर्णम् । अरो.; ग. नि.। चूर्णा.; वं. से. । अरो.; ग. नि. । कासा.)
तन्मातुलुङ्गस्य रसेन भावितं द्वे पले दाडिमादष्टौ खण्डाव्योषात्पलत्रयम् ।
सपित्तशूले शमनाय भक्षेत् ॥ त्रिमुगन्धिपलं चैकं चूर्णमेकत्र कारयेत् ॥
अनारदाना, हर्र और आमला हरेक ११-१॥ दीपनं रोचनं हृधं पीनसश्वासकासजित् ॥ ।
तोला लेकर चूर्ण बनावें; और उसे एक दिन अनारदाना १० तोले, खांड ४० तोले,
बिजौरे नीबूके रसमें घोटें । इसके सेवनसे पित्तज सांठ, मिर्च, पीपल हरेक ५ तोले, और दालचीनी,
शूल नष्ट होता है। तेजपात तथा इलायची तीनों मिलाकर ५ तोले
( मात्रा-३ माशे । अनुपान उष्णजल ।) ( अथवो सांठ, मिर्च, पीपलमेंसे हरेक १५ तोले | (२९५५) दाडिमादियोगः और दालचीनी आदि हरेक चीज ५ तोले ) ले
(यो. र. । मूत्रकृ.) कर चूर्ण बनावें ।
दाडिमाम्लयुतां हृद्यां शुण्ठीजीरकसंयुताम् । __यह चूर्ण दीपन, रोचक, हृद्य और पीनस, पीत्वा मुरां सलवणां मूत्रकृच्छ्रात्प्रमुच्यते ॥ खांसी तथा श्वास नाशक है।
___अनारके रसमें सेठ और जीरेका चूर्ण मिला( मात्रा-२-३ माशे । शहदके साथ ।) | कर लवणयुक्त सुरा ( शराब ) के साथ पीने से (२९५३) दाडिमादिचूर्णम् (२) मूत्रकृच्छू नष्ट होता है । यह प्रयोग हृदयके लिए (बूं. मा. । हृद्रोग.)
भी हितकारी है। दाडिम कृष्णलवणं शुण्ठी हिङ्गवम्लवेतसम् । । ( मात्रा १-२ माशा ।)
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