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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - (सेंड से चूर्णप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [२५] इसे मलकर ऊपरसे खटाई मल दी जाय तो दांत कसीस, बायबिडंग और इन्द्रजौ समान भाग लेकर काले हो जाते हैं। | चूर्ण बनावें । इस चूर्णको या आक और स्नुही (२९४२) दन्तरोगाशनिचूर्णम् (सेंड-सेहुण्ड) के दूधको कृमिवाले दान्तमें भरनेसे (भै. र. । मुख.) दांतके कृमि नष्ट हो जाते हैं। जातीपत्रपुनर्नवातिलकणाकोरण्टमुस्तावचाः। (नोट-आक और स्नुहीका दूध सावधानी शुण्ठीदीप्यहरीतकी च सघृतं चूर्ण मुखे धारयेत् । पूर्वक कृमिवाले दांतकी खोखरमें भरना चाहिये । वातघ्नं कृमिदन्तशूलदहनं सर्वामयध्वंसनम् । अन्य दांत या मसूढ़ेको न लगने देना चाहिये। दौगन्ध्यादिसमस्तदोषहरण दन्तस्य रोगाशनिः (२९४५) दन्त्यादिचूर्णम् (२) ___ चमेलीके पत्ते, बिसखपरा ( साठी ), तिल, (वं. से. । शूला.) पीपल, झिण्टो (पियाबांसा) के पत्ते, मोथा, बच, | दन्ती च प्रिवृता श्यामा कर्णिका कटुकाया। सांठ, अजवायन, और हर्र । सब चीजें समान नीलिका नागर चूर्ण वैलेनैरण्डजेन वा ॥ भाग लेकर चूर्ण करें और उसमें थोड़ासा घी डाल- | युक्तं विरेचनं सद्यः पक्तिशूलनिवारणम् ॥ कर अच्छी तरह मल दें। इसमें से थोड़ासा चूर्ण दन्ती, निसोत, काली निसोत, सेवतीके फूल, मुखमें रखनेसे दन्तकृमि, दांतांकी वातज पीड़ा, कुटकी, नीलका पंचांग, और सेठ । इनके चूर्णको दन्तशूल और मुखकी दुर्गन्धादि समस्त रोग नष्ट | अरण्डके तेलमें मिलाकर देनेसे विरेचन होकर परिहोते हैं। णाम शूल तुरन्त नष्ट हो जाता है । (२९४३) दन्तशूलनाशकयोगः (मात्रा-बलवान पुरुषके लिए-तेल ४ तोले, (वृं. मा. । मुख.) चूर्ण ६ माशे ।) माक्षिकं पिप्पलीसर्पिमिश्रितं धारयेन्मुखे। (२९४६) दशनसंस्कारचूर्णम् दन्तशूलहरं प्रोक्तं प्रधानमिदमौषधम् ॥ | (धन्व.; भै. र. । मुख रोग.) पीपलके चूर्णमें शहद और घी मिलाकर मुखमें | शुण्ठी हरीतकी मुस्ता खदिरं घनसारकम् । ( दांतके नीचे ) रखने से दन्तशूल नष्ट होता है। गुवाकुभस्म मरिच देवपुष्प तथा त्वचम् ॥ दन्तशूलनाशक औषधोंमें यह एक प्रधान औ- एतेषां समभागेन चूर्णमेव विनिर्दिशेत् । षध है। | तत्समं प्रक्षिपेत्तत्र चूर्ण कठिनी सम्भवम् ॥ (२९४४) दन्त्यादिचूर्णम् (१) चूर्ण दशनसंस्कारं दन्तरोगविनाशनम् ॥ (वं. से. । दन्तरोगा.) सांठ, हरे, मोथा, खरसार, कपूर, सुपारीकी दन्तीसुवर्णदुग्धाकासीसविरश्वत्सकफलानाम्। राख, काली मिर्च, लैंौंग और दालचीनी। सब चूर्णैरकस्मुखोः पयोभिर्वा पुरणं श्रेष्ठम् ॥ चीजें समान भाग तथा साफ खिड़िया मिट्टी इन दन्ती, सत्यानासी ( स्वर्णक्षीरी) की जड़ ' सबके बराबर लेकर सबका महीन चूर्ण बनावें । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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