Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[२४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[दकारादि पित्तपापड़ा, पटोलपत्र, बासा, खस, हर्र, बहेड़ा, | छिपञ्चमूलादिकाथ: आमला और इन्द्रजौ । इस काथ को पीनेसे द्वि
(३. यो. त. । त. १२५) दोषज, सन्निपातज और रक्तज विस्फोटक नष्ट ।
दशमूलादिकाथ सं. २८३५ देखिये। होता है।
(२९३९) विपश्वमूल्यादिकल्क:
(हा. सं. । स्था. ३ अ. २) (२९३७) बादशाङ्गकाथ: (२)
द्विपश्चमूली सह नागरेण . (र. र. । ज्वर)
- गुडूचिभूनिम्बयन समेताः ।
| कल्कःमशस्तः सगुडो मरुत्सु दद्यात्पाचनकं पूर्वमामे स्तब्धे सनागरैः ॥
. सपिचवातज्वरनाशहेतु ॥ दशमूल, पीपल और धनिये का क्वाथ पित्त- दशमूल, सेठ, गिलोय, चिरायता और नागर कफज ज्वरमें पहिले ही पाचनार्थ देना चाहिए। मोथा समान भाग लेकर पानीमें पीसकर गुडमें मिलासामज्वरमें शरीरके स्तब्ध होनेमें उसमें सोंठ और कर खानेसे वातज तथा वातपित्तज्वर नष्ट होता है। बढ़ा लेनी चाहिए।
। (२९४०) द्विवार्ताकीफलरसादिप्रयोगः (२९३८) द्विनिशादिशीतकषायः
(यो. त. । त. । ७७) (वृ. नि. र. । प्रमे.) द्विवार्ताकीफलरसं पञ्चकोलं च लेहयेत् । द्विनिशात्रिफलायुक्तं रात्री पर्युषितं जलम्।। एकत्रिीणि घस्राणि वातपित्तकफज्वरे ॥ प्रभाते मधुना पीत मेहशूलं निकृन्तति ।। दोनों प्रकारकी ( छोटी और बड़ी) कटेलीके ___ हल्दी, दारुहल्दी, हर्र, बहेड़ा और आमला फलेके रस में पञ्चकोल ( पीपल, पीपलामूल, चव, (हरेक ६ माशे) लेकर रातको (१५ तोले) पानीमें चीता और सांठ ) का चूर्ण मिलाकर चटानेसे एक भिगोदें । प्रातःकाल मलकर छानलें । इसमें शहद दिनमें वात ज्वर, दो दिनमें पित्तज्वर और तीन मिलाकर पीनेसे प्रमेह नष्ट होता है।
दिनमें कफज्वर नष्ट हो जाता है। __इति दकारादिकषायप्रकरणम्
अथ दकारादिचूर्णप्रकरणम् (२९४१) दन्तमसी
___ कसीस, हर्र, बहेड़ा, आमला, माजूफल, जंगी (यो. चि. । अ. २) हर्र ( काली हर्र ), कपूर, खैरसार, सोनामक्खी कासीसं त्रिफला माजुफलं जांगीहरीतकी। भस्म, लोहभस्म, मंगेका महीन चूर्ण ( या भस्म ), कर्पूर खदिरं ताप्यं लोहचणे च बिद्रयम् ॥ अनारकी छाल, मजीठ, लोध, फटकी, मस्तगी, बोल दाडिमत्त्वक् च मञ्जिष्ठा लोभ्रं तुल्यं सुराष्ट्रजा, गोंद, और सुपारी (पुरानी) । सब चीजें समान मस्तंगी च बोल पूगं सर्व सूक्ष्मविचूर्णितम् ॥ भाग लेकर महीन चूर्ण करें। दन्तशूलहरं चाम्लेंदन्तकृष्णीकर तथा ।
इसे दांतों पर मलनेसे दन्तशूल नष्ट होता है।
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