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भरतबाहुबलिमहाकाव्यम्
स्वगंगा की वेगवती ऊर्मियाँ मार्ग में आने वाले पर्वतों को भी उखाड़ देती हैं । उसके सामने भी जो बेंत की भांति हिलोरें नहीं खाता, किन्तु अडिग रहता है, उसे स्वाभिमान बाहुबली के समक्ष मेरी गणना ही क्या है ?
५.
मैं एक बार अपनी दृढमुष्टि से बाहुबली पर प्रहार किया था । मुझे भय लगा कि कहीं वह मेरे पर भी प्रहार न करदे, इसलिए मैं डरकर पिताश्री के पास चला गया । उसने मुझे पीटना चाहा, किन्तु पिताश्री ने उसे यह कहकर रोक दिया कि 'भरत तेरा बड़ा भाई है ।'
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निहताद् दृढमुष्टिना मया सभयोस्मादहमन्तिकं पितुः । गतवान् किल तेऽग्रजस्तुदन्निति तातेन निषिद्ध एष माम् ॥
७.
· श्रुतयापि रणस्य वार्तया मनसोत्साहमऽयं दधौतराम्- ।
कथमस्य दधाति नाधुना भुजयोरुत्सवमागतो रणः ॥
1
युद्ध की बात सुनते ही उसका मन उत्साह से भर जाता था। तो अभी जो साक्षात् युद्ध प्रस्तुत हो रहा है, उसको उसकी भुजाएँ उत्सव क्यों नहीं मानेंगी ?
"
E.
कठिनो भटिमाधिकत्वतो', युधि कामोस्य तथा प्रवर्तते ।
नो तथाऽस्य च राज्यसंग्रहे समरः शौर्यवतां हि वल्लभः ॥
"
उत्कट योद्धा होने के कारण इस हठी बाहुबली की जैसी कठोर कामना युद्ध के प्रति है, वैसी राज्य-संग्रह में नहीं है । क्योंकि पराक्रमी के लिए संग्राम प्रिय होता है ।
८. यदि तद्बलमस्य दो हमशङ्केपि यतो विशेषतः ।
युधि नास्य विभुस्तदासितुं पुरतः कोपि विभावसोरिव ॥
"
जिससे मैं विशेषरूप से डरता था वही शैशवकालीन बल यदि उसकी दोनों भुजाओं में है तो युद्ध में उसके सामने कोई भी नहीं ठहर सकेगा, जैसे अग्नि के सामने कोई भी नहीं ठहर पाता ।
बहुधास्य बलं हि शैशवे, वसुवत् स्वर्णकृता परीक्षितम् । परीक्षितमेव पूर्वतो विदुषा वस्त्वनुतापकृद् भवेत् ॥
१. भटिमाधिकत्वतो - वीरतातिशयत्वतः ।
२. विभावसोरिव - अग्नेरिव ।