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षष्ठः सर्गः .. ३३. आश्रितः स किलं सिन्धुररत्न' , हस्तिमल्ल मिव कि सुरराजः।
यात्यकि विबुधैरिति साक्षान्नेक्षणद्वयसहस्रविभेदात् ॥
भरत चक्रवर्ती हस्तिरत्न पर आरूढ़ थे। उन्हें देखकर देवताओं ने ऐसी वितर्कणा की कि क्या इन्द्र ऐरावत हाथी पर बैठ कर जा रहा है ? उन्होंने साक्षात् देखकर कहा'नहीं, इनके तो दो ही आंखें हैं पर इन्द्र तो हजार आंखों वाला होता है । इसलिए ये इन्द्र नहीं हो सकते ।'
३४. उर्वशी गुणवशीकृतविश्वा , तं निपीय विममर्श तदेति ।
यत्पतिस्त्वधिकरूपभरश्रीरस्त्यसो जगति धन्यतमा सा॥
अपने गुणों से समूचे विश्व को वश में करने वाली देवगणिका उर्वशी ने भरत को एकटक निहारते हुए सोचा-'यह अत्यन्त रूपवान् और कांतिमान् भरत जिसका पति है वह स्त्री संसार में धन्य-धन्य है।
३५. रम्भया श्रितनभोन्तरयाऽयं , वासवादधिकरूपविलासः।
इत्यचिन्त्यत पुनर्नगरीयं , नाकनाथनगरा दतिरिक्ता॥
आकाश के बीच खड़ी हुई नलकुबेर की पत्नी रम्भा ने यह वितर्कणा की कि महाराज भरत इन्द्र से भी अधिक रूप-सम्पन्न हैं और यह अयोध्या नगरी इन्द्र की नगरी अमरावती से भी विशिष्ट है।
३६. गोपुरं पुर इवाननमस्या , नीलरत्ननयनद्युतिरम्यम् ।
उत्तरङ्ग ततभालचकासद् , रत्नतोरणविशेषक शोभम् ॥ ३७. जातरूपमयभित्तिकपोलश्रीसनाथवलभी वरनासम् ।
नागदन्त लटभ भ्र विशिष्टश्रीविलासकिसलाधरबिम्बम् ॥
१. माना जाता है कि चक्रवर्ती का हस्तिरत्न हजार देवताओं द्वारा अधिष्ठित होता है। २. हस्तिमल्ल:-ऐरावत हाथी (ऐरावतो हस्तिमल्ल:-अभि० २।९१) ३. उर्वशी-उर्वशी नाम की अप्सरा। ४. निपीय–दृष्ट्वा । ५. नाकनाथनगरं-नाकनाथ (इन्द्र) की नगरी-अमरावती । ६. उत्तरङ्ग-द्वार के ऊपर तिरछी लगी हुई लकड़ी (तिर्यग्द्वारोवंदारूत्तरङ्ग–अभि० ४।७२) ७. विशेषकः-तिलक (तिलके तमालपत्रचित्रपुण्डविशेषका:-अभि० ३।३१७) ८. वलभी-छज्जा (वलभी छदिराधारः-अभि० ४१७७) ६. नागदन्तः-बूंटी (नागदन्तास्तु दन्तका:-अभि० ४१७७) १०. लटभ:-सुन्दर, वक्र ।